Surprise Me!

आओ, डूबो, बाकी सब भूलो || आचार्य प्रशांत, श्रीकृष्ण पर (2014)

2020-03-29 1 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br />शब्दयोग सत्संग, 16.3.14, कनाताल, उत्तराखंड, भारत <br /> <br />प्रसंग: <br />यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः ।<br />यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ॥ ६.२२ ৷৷<br /><br />भावार्थ: परमात्मा की प्राप्ति रूप जिस लाभ को प्राप्त होकर उससे अधिक दूसरा कुछ भी लाभ नहीं मानता और परमात्मा प्राप्ति रूप जिस अवस्था में स्थित योगी बड़े भारी दुःख से भी चलायमान नहीं होता ॥ <br />~ श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय ६, श्लोक २२) <br /><br />तं विद्याद् दुःखसंयोगवियोगं योगसञ्ज्ञितम् ।<br />स निश्चयेन योक्तव्यो योगोऽनिर्विण्णचेतसा ॥ ६.२३ ৷৷ <br /><br />भावार्थ: जो दुःखरूप संसार के संयोग से रहित है तथा जिसका नाम योग है, उसको जानना चाहिए । वह योग न उकताए हुए अर्थात धैर्य और उत्साहयुक्त चित्त से निश्चयपूर्वक करना कर्तव्य है ॥ ~ श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय ६, श्लोक २३) <br /><br />युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु ।<br />युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा ॥ ६.१७ ৷৷<br /><br />भावार्थ: दुःखों का नाश करने वाला योग तो यथायोग्य आहार-विहार करने वाले का, कर्मों में यथायोग्य चेष्टा करने वाले का और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है ॥ ~ श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय ६, श्लोक १७)<br /><br />~ बड़े से बड़े भारी दुखों से रक्षा कैसे हो?<br />~ क्या संसार दुःख रूप नहीं है?<br />~ योगी कैसे बने?<br />~ हमारा कर्त्तव्य क्या है?<br />~ सबकुछ भूलकर परमात्मा में लीन कैसे हों?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते

Buy Now on CodeCanyon